एक ज्योतिषी की कुंडली में आखिर किस प्रकार के योग होते हैं। समझते है कि ज्योतिषी बनने के कारक क्या है। वैदिक ज्योतिष में जन्मपत्री के माध्यम से व्यक
एक ज्योतिषी की कुंडली में आखिर किस प्रकार के योग होते हैं। समझते है कि ज्योतिषी बनने के कारक क्या है।
वैदिक ज्योतिष में जन्मपत्री के माध्यम से व्यक्ति के कर्म का विचार किया जाता है। आम तौर पर दशम,दूसरे और पंचम भाव और उनमे बैठे ग्रहों के माध्यम में यह पता लगाया जाता है कि जातक की आमदनी का स्तोत्र क्या होगा ?इस लेख में आज हम आपको समझाने वाले है कि एक ज्योतिषी की कुंडली में आखिर किस प्रकार के योग होते हैं। सबसे पहले यह समझते है कि ज्योतिषी बनने के कारक क्या है।
1.महर्षि पाराशर ने चन्द्रमा को प्रधानता दी है। दरअसल चंद्रमा मन का कारक है और उसके बलवान होकर शुभ ग्रह के साथ होने से व्यक्ति की सोचने समझने की ताकत बढ़ जाती है।
2.शनि ग्रह को रहस्य का कारक माना गया है। शनि आठवें भाव का कारक होता है जिससे छिपी हुई ऊर्जा का जातक को अहसास होता है। ज्योतिष एक छिपा हुआ ज्ञान है जो साधना से जाग्रत होता है।
3.बृहस्पति ग्रह नवम के कारक है और दूसरे भाव के भी,जातक की धर्म में रूचि और उसकी वाणी सिद्ध होना बहुत ज़रूरी है। इसलिए गुरु का बलवान होना भी एक शर्त है।
4.बुध ग्रह को किताब का कारक माना गया है,अगर जातक अध्ययन नहीं करेगा तो वो इतने जटिल विषय को नहीं समझ सकता है। इसके अलावा बुध संवाद का कारक है। इस विद्या को जो समझता है उसे हमेशा नाप तौल कर संवाद करना होता है।
5.केतु ग्रह छठी इंद्री का कारक है। जब तक केतु बलवान नहीं होगा जातक को भविष्य का आभास नहीं होता है। केतु का बलवान होना जातक को मंत्र सिद्धि दे देता है।
6- इसके अलावा वाणी भाव,नवम भाव,आठवां भाव भी बलवान होना चाहिए।
अब एक उदाहरण कुंडली से समझते है कि व्यक्ति ज्योतिषी कैसे बना ?
1 – इस कुंभ लग्न की कुण्डली में जातक का चन्द्रमा उच्च का होकर मां के घर में बैठा है। इसलिए जातक किसी भी विषय को जल्दी समझता है।
2 – यहां गुरु वाणी भाव के स्वामी होकर पंचम में भाग्येश शुक्र के साथ विराजमान है। इसलिए जातक बचपन से धर्म कर्म में रूचि रखने वाला और पुराण पढ़ने वाला है।
3 – यहां शनि गुरु पर दृष्टिपात कर रहे है। शनि की ऊर्जा से पंचम और अष्टम भाव प्रभावित है वहीं आठवें भाव का स्वामी बुध छठे भाव में केतु के साथ है।
4 – शनि से आठवें भाव का प्रभावित होना और उसी भाव के स्वामी का केतु के साथ जाने जातक की तंत्र मंत्र और रहस्य में रूचि हो गई।
5 – यहां बुध छठे भाव में दशमेश मंगल से दृष्ट है जिसके कारण जातक अध्ययन में रूचि रखता है।
6 – बुध यहां आठवें भाव के स्वामी होकर केतु के साथ विराजमान है और विपरीत राजयोग का निर्माण कर रहे है। इस राजयोग के कारण जातक को इस विद्या को समझने में आसानी हुई।
अगर इस जन्मपत्री को ध्यान से देखे तो इसमें वाणी भाव,पंचम भाव,नवम भाव,केतु,शनि और बुध के आपसी संबंध ने जातक को ज्योतिषी बना दिया।
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